
आज़ाद पत्रकार न्यूज। सात सितंबर को दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से शुरू हुई राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को 136 दिन बाद 14 राज्य का सफ़र करते हुए श्रीनगर में समाप्त हो गईसात सितंबर को दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से शुरू हुई राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को 136 दिन बाद 14 राज्य का सफ़र करते हुए श्रीनगर में समाप्त हो गई।
कांग्रेस पार्टी के अनुसार, राहुल गांधी की इस यात्रा का घोषित उद्देश्य ”भारत को एकजुट करना और साथ मिलकर देश को मज़बूत करना है.”
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि वो देश में नफ़रत के ख़िलाफ़ मोहब्बत की दुकान खोलना चाहते हैं.

यात्रा के दौरान जगह-जगह भाषण देते हुए और मीडिया से बात करते हुए राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और बेरोज़गारी, महंगाई, भारत के सीमा क्षेत्र में चीन के दख़ल का मुद्दा उठाया.
सात सितंबर को दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से शुरू हुई राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को 136 दिन बाद 14 राज्य का सफ़र करते हुए श्रीनगर में समाप्त हो गई, कांग्रेस पार्टी के अनुसार, राहुल गांधी की इस यात्रा का घोषित उद्देश्य ”भारत को एकजुट करना और साथ मिलकर देश को मज़बूत करना है.कांग्रेस पार्टी के अनुसार, राहुल गांधी की इस यात्रा का घोषित उद्देश्य ”भारत को एकजुट करना और साथ मिलकर देश को मज़बूत करना है.
राहुल गांधी ने कई बार मीडया को भी निशाने पर लिया और भारत के बड़े उद्योगपतियों गौतम अदानी और मुकेश अंबानी पर भी निशाना साधा.रविवार को राहुल गांधी की यात्रा समाप्त हो गई. इस यात्रा से पहले कई सवाल थे- राहुल गांधी हासिल क्या करना चाहते हैं, क्या वो विपक्ष को एकजुट कर पाएंगे, क्या वो कांग्रेस को पुनर्जीवित कर पाएंगे?

श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में भारी बर्फबारी के बीच सोमवार (30 जनवरी) को कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह आयोजित हुआ. भारत जोड़ो यात्रा के समापन के मौके पर राहुल गांधी ने भगवान शिव की सोच और इस्लाम के बीच कनेक्शन की बात कही. उन्होंने लोगों को फना शब्द का मतलब समझाया.श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में भारी बर्फबारी के बीच सोमवार (30 जनवरी) को कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह आयोजित हुआ. भारत जोड़ो यात्रा के समापन के मौके पर राहुल गांधी ने भगवान शिव की सोच और इस्लाम के बीच कनेक्शन की बात कही. उन्होंने लोगों को फना शब्द का मतलब समझाया.
राहुल गांधी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि एक तरफ शिवजी की सोच है. थोड़ी सी गहराई में जाएंगे, तो इसे शून्यता कहते हैं. उन्होंने कहा कि शिवजी की सोच है, अपने आप पर, अपने अहंकार पर, अपने विचारों पर आक्रमण करना. उन्होंने कहा कि दूसरी तरफ इस्लाम में इसे फना कहा जाता है. सोच वही है.

अपने ऊपर उठ रहे सवालों को ख़ारिज कर गंभीर नेता के रूप में स्थापित हुए राहुल गांधी ~ विजय त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार
राहुल गांधी ने क़रीब चार हज़ार किलोमीटर की यात्रा की है. बहुत से लोग ये कह रहे हैं कि उन्होंने टी-शर्ट पहनकर ये यात्रा की है. टी-शर्ट पर चर्चा करना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है. इस पर चर्चा करना इस यात्रा को नज़रअंदाज़ करने जैसा है. राहुल गांधी ने एक बहुत बड़ा काम किया है. आज़ाद भारत में चंद्रशेखर की पदयात्रा के बाद ये कोई पहली पदयात्रा हुई है.राहुल गांधी ने इस यात्रा के ज़रिए उन सभी सवालों को ख़ारिज कर दिया है जो उन पर उठते रहे थे. पहले कहा जाता था कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद नहीं छोड़ेंगे, उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ा, फिर कहा गया कि वो ख़ुद अध्यक्ष बन जाएंगे, लेकिन वो नहीं बने, इसके बाद कहा गया कि अध्यक्ष के चुनाव को टाल दिया जाएगा, लेकिन वो भी नहीं टाला गया. ऐसा कुछ नहीं हुआ और राहुल गांधी ने जो काम करना तय किया था, वो उसमें लगे रहे और उसे पूरा किया.
भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए राहुल गांधी ने एक मज़बूत और गंभीर नेता की छवि बनाई है. बीजेपी और सोशल मीडिया ट्रोल ने राहुल गांधी की अलग छवि बनाई थी. पहले राहुल गांधी का मज़ाक बनाते हुए मीम सोशल मीडिया पर शेयर किए जाते थे. अब ये मीम कम हो गए हैं और राहुल गांधी के लिए सकारात्मक कंटेंट सोशल मीडिया पर बढ़ गया है.
इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी की बहुत-सी ख़ूबसूरत तस्वीरें भी आईं. कहीं राहुल बच्चों के साथ खेल रहे हैं, कहीं बुज़ुर्ग महिला का हाथ थाम रहे हैं तो कहीं आम लोगों को गले लगा रहे हैं. इन तस्वीरें से भी राहुल गांधी की एक सकारात्मक छवि बनी है.
इस यात्रा ने राहुल गांधी के व्यक्तित्व को भी गंभीर बनाया है. हिंदू धर्म में यात्राओं का अहम स्थान रहा है. यात्राएं व्यक्तित्व को गंभीर बनाती हैं. राहुल गांधी ने इस यात्रा के ज़रिए हिंदुस्तान को देखा है, ज़ाहिर है उन्होंने देश के हर गंभीर मुद्दे को भी समझा होगा.अफ़्रीका से लौटने के बाद जब गांधी भारत आए थे तब उन्होंने भी भारत में यात्राएं कीं और देश को समझा. भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को देश को समझने का मौका दिया है.राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के मज़बूत नेतृत्व के सामने एक ताक़तवर विकल्प के रूप में खड़े होने की कोशिश भी इस यात्रा के ज़रिए की है. यदि राहुल गांधी को बराबर का नेता ना भी कहें तब भी अब वो कतार में तो आ ही गए हैं. अब लोग राहुल गांधी को गंभीरता से ले रहे हैं.भारत जोड़ो के नारे में राहुल गांधी कितने कामयाब हुए, ये बाद में पता चलेगा. लेकिन इस दौरान राहुल गांधी जिस तरह लगातार प्रधानमंत्री को घेरते रहे उससे उन्हें फ़ायदा हुआ है. सबसे पहले तो वो कांग्रेस के निर्विवादित नेता बन गए हैं. कांग्रेस में विद्रोहियों का जो कथित जी-20 समूह था वो भी शांत हो गया है और सभी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है.भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं, लेकिन पार्टी के नेता राहुल गांधी ही हैं.इसके अलावा राहुल गांधी विपक्ष के नेताओं में भी आगे निकल गए हैं. अब तक चाहे ममता बनर्जी हों या अरविंद केजरीवाल, वो सभी राहुल गांधी की गंभीरता पर सवाल उठाते रहे थे. आज उन सभी को लग रहा है कि राहुल गांधी के बिना विपक्ष की एकता मुमकिन नहीं है.कांग्रेस के कार्यकर्ता भी इस यात्रा के ज़रिए सक्रिय हुए हैं. जिन-जिन राज्यों से ये यात्रा गुज़री है वहां पार्टी और कार्यकर्ता कार्यशील हो गए हैं. एक तरह से कहा जा सकता है इस यात्रा से कांग्रेस पार्टी को नई जान मिली है.अभी ये नहीं कहा जा सकता है कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी या कांग्रेस को राजनीतिक रूप से कितना फ़ायदा होगा. लेकिन यदि कांग्रेस अब अपने दम पर सौ लोकसभा सीटने क स्थिति में भी पहुंच जाती है तो वो निश्चित रूप से विपक्ष का बड़ा चेहरा होंगे.

राहुल ने साबित किया वो विपक्ष का केंद्र हैं ~’राजकिशोर, वरिष्ठ पत्रकार
राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के उद्देश्य को लेकर घोषणा कुछ भी की हो, लेकिन निश्चित तौर पर इस यात्रा का मक़सद उन्हें राजनीतिक तौर पर स्थापित करना है.जहां तक नफ़रत का माहौल दूर करने की बात है, तो कांग्रेस या किसी भी राजनीतिक दल का परम उद्देश्य यही होना चाहिए. ये देश का मूल मुद्दा है, स्वस्थ समाज के लिए ये ज़रूरी है कि उसमें किसी भी तरह की नफ़रत, वैमनस्य, छुआछूत या घृणा ना हो.अगर कोई राजनीतिक दल इस तरह का उद्देश्य लेकर आगे चलता है तो सही ही है. इसमें कोई शक़ नहीं है कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सांप्रदायिकता का मुद्दा उठाया और लोगों को मिलकर एक साथ रहने का संदेश दिया.राहुल गांधी की इस भारत जोड़ो यात्रा का मक़सद सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के भीतर ही उन्हें गंभीर नेता के तौर पर स्थापित करने और उन पर पार्ट टाइम पॉलीटीशियन होने का जो आरोप लगता रहा है, उसे दूर करना था.आज सवाल ये है कि पूरे देश में मोदी और बीजेपी के ख़िलाफ़ केंद्र कौन होगा, इस यात्रा से राहुल ने इसका जवाब देने की कोशिश की है. नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से उनके विरोधियों को भारत जोड़ो यात्रा ने पहली बार इस तरह का प्लेटफ़ॉर्म दिया है. भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आते ही पहला काम ये किया कि कांग्रेस को विपक्षी दल का दर्जा ना देते हुए उसे क्षेत्रीय दलों से भी कमतर साबित करने और राजनीति में किनारे करने की कोशिश की.राहुल गांधी के लिए सबसे अहम था कि देश की सबसे पुरानी और पहचान वाली पार्टी को पुनर्जीवित करना. भारत का शायद ही कोई गांव ऐसा होगा जहां कांग्रेस पार्टी को लोग ना जानते हों.विपक्ष में रह-रहकर क्षेत्रीय नेता सामने आ रहे थे. कभी ममता बनर्जी, कभी नीतीश कुमार, कभी केसीआर तो कभी अरविंद केजरीवाल. लेकिन इस यात्रा के ज़रिए राहुल ने ये साबित करने की कोशिश की है कि देश में सत्ता के विपक्ष का केंद्र वही हैं.

राहुल को पहले ख़ुद को स्थापित करना था कि देश में विपक्ष कांग्रेस के बिना नहीं हो सकता है.जब कांग्रेस सत्ता में थी तब बीजेपी या संघ परिवार उसके विरोध का केंद्र होता था. अब कांग्रेस के सामने ये चुनौती थी कि वो अपने आप को विपक्ष का केंद्र बनाए. राहुल ने इस यात्रा से ऐसा ही किया है. राहुल अपनी इस कोशिश में बहुत हद तक कामयाब भी नज़र आ रही हैं.यात्रा अब समाप्त हो गई है और राहुल गांधी बहुत से लोगों को अपने साथ लाने में कामयाब भी हुए हैं. हालांकि वो अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, केसीआर और ममता को साथ नहीं ला पाए.लेकिन सवाल ये है कि विरोध किसने किया? आगे गठबंधन क्या शक्ल लेगा ये सीटों के बंटवारे पर निर्भर करेगा, लेकिन राहुल कम से कम ये साबित करने में तो कामयाब ही रहे हैं कि कांग्रेस का चेहरा वो हैं.जितनी लंबी यात्रा राहुल गांधी ने की है वैसी यात्रा करना देश में किसी और दल के लिए संभव भी नहीं था. निश्चित तौर पर भारत की राजनीति में राहुल गांधी ने इस यात्रा से एक लंबी लकीर तो खींच ही दी है.2012 में जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हार हुई थी तब कांग्रेस ने एंटनी समिति बनाई थी. उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक तो नहीं हुई थी, लेकिन सूत्रों के हवाले से ये पता चला था कि उस रिपोर्ट में कहा गया था कि कांग्रेस धर्म-निरपेक्ष दिखने की कोशिश में कई बार हिंदू विरोधी दिखने लगती है.इसमें राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह के कुछ बयानों का ज़िक्र था.राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि अपनी धार्मिक आस्था, अपनी मां सोनिया गांधी के विदेशी मूल और धर्म को लेकर उठने वालों सवालों पर हमेशा के लिए विराम लगा दें.राहुल गांधी इस यात्रा में मंदिरों में गए, जनेऊ पहना, बार-बार भगवान का ज़िक्र किया, यानी राहुल गांधी ने अपने दर्शन का खुला प्रदर्शन करने की कोशिश की.लेकिन एक बात स्पष्ट है कि हिंदुत्व नरेंद्र मोदी की पिच है और इस पर मुक़ाबला करने में कांग्रेस कितना सफल हो पाएगी, इसे लेकर हमेशा सवाल रहे हैं. हिंदुत्व की पिच पर अभी कोई पार्टी बीजेपी की तरह नहीं खेल पाएगी. हालांकि अब बीजेपी राहुल पर उस तरह से हिंदू विरोधी होने का आरोप नहीं लगा पाएगी जैसा लगाती रही है.और हिंदुत्व सिर्फ़ एकमात्र मुद्दा नहीं है. महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, ये भारत में अब भी बड़े मुद्दे हैं. बीजेपी लंबे समय से सत्ता में है, तो उसका कुछ स्वाभाविक विरोध भी होगा.ऐसे में भले ही हिंदुत्व के मुद्दे पर राहुल गांधी बीजेपी को बहुत चुनौती ना दे पाएं, लेकिन बीजेपी अब राहुल गांधी को उस तरह हिंदू विरोधी साबित नहीं कर पाएगी जैसा कि करने में वो अब तक सफल रही थी. इस मामले में भले ही आंशिक रूप से, राहुल गांधी सफल तो रहे हैं.भारत में हिंदुत्व को लेकर कई बयान आए हैं, हिंदू राष्ट्र को लेकर मांग भी उठी है, लेकिन क्या ये सरकार की तरफ़ से हो रहा है? इसका एक पहलू ये भी है कि आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मुसलमानों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है. बीजेपी और आरएसएस को ये समझ आ रहा है कि आप एक बड़ी आबादी को धर्म के आधार पर अलग नहीं कर सकते हैं ।

राहुल ने लोगों को जोड़ा लेकिन क्या वो वोट में बदल पाएंगे? ~हेमंत अत्री, वरिष्ठ पत्रकार
इस यात्रा से सबसे पहली बात तो ये स्पष्ट हुई है कि अभी भारत में विपक्ष की जगह ख़त्म नहीं हुई है. विपक्ष की जगह अभी भी बरक़रार है, लेकिन विपक्ष को मज़बूत होने के लिए लोगों के बीच जाना होगा और उनसे बात करनी होगी.पिछले आठ साल में एक तरह से बीजेपी मीडिया में हावी थी या बीजेपी का एकाधिकार था. मीडिया में बात बीजेपी से शुरू होकर बीजेपी पर ही ख़त्म होती थी. लेकिन राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए लोगों के बीच जाकर ये साबित कर दिया है कि विपक्ष भी अपनी जगह बना सकता है. आज सिर्फ़ क्षेत्रीय मीडिया ने ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय मीडिया ने भी राहुल गांधी की कवरेज की है और राहुल दिखाई देने लगे हैं.राहुल की यात्रा से एक बात और स्पष्ट हई है कि लोग विपक्ष के साथ चलने को तैयार हैं. राहुल की यात्रा में भारी तादाद में लोग आए हैं, ये आगे चलकर वोट में बदलेंगे या नहीं ये भविष्य में पता चलेगा, लेकिन इस यात्रा ने बीजेपी के ख़िलाफ़ एक माहौल तो बनाया ही है.भारत में बेरोज़गारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर सरकार के ख़िलाफ़ पहले से ही माहौल है. इस यात्रा में ये मुद्दे भी उठे हैं.।
